बिहार का देवघर अशोक घाम
लखीसराय जिले का नगर परिषद क्षेत्र के वार्ड संख्या- 01 में अशोक घाम है, जो आज बिहार का देवघर कहलाता है । श्री इन्द्रदमनेश्वर महादेव मंदिर अशोकधाम परिसर में आज भी भक्तगण सिमरिया के गंगाघाट से कावर लेकर जल भरकर पैदल 30 कि0मी0 अशोक घाम श्री इन्द्रदमनेश्वर महादेव मंदिर में पुजा अर्चना करने आ रहे है। यहा साबन का महीना में काफी मनमोहक दृश्य देखा जाता है ! भगवान श्रीराम द्वारा पुजित शिवलिंग श्रावण माह का पहला दिन पूजा-अर्चना में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ भक्तगण भगवान शिव के शिवलिंग पर जलाभिषेक करता है ।
सबसे बडी खासियत है यह कि----
यहा प्रतिदिन शादी होता है वो भी बिना कोई लगन-मूर्हत के, सभी अन्य दिन और रात को सैकडो जोडों वर-बधु की विवाह पारंपरिक वैदिक रीति-रिवाज से सम्पन्न होता है यहा सभी दिन काफी भीड होती है फिर भी जिला प्रशाषण द्वारा सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं रहता है यहाॅ दर्जनों प्रेम-विवाह, एवं पकडौवा-विवाह बिना रोक-टोक के सम्पन्न होता है ।
पौराणिक इतिहासिक परिचय ------
भगवान जब अपने लीलाओं को अपने भक्तों को दिखाना चाहे है तब-तब किसी न किसी रूप में इतिहास रचा है जैसे श्री राम ने रामायण में कई विवरण की व्याख्या सहित भाई-चारे का जो लीलाओं का विवरण किया वह इतिहास में लिखा गया है । ठीक इसी प्रकार भगवान भोलेनाथ की इच्छा जब प्रकट होकर अपने भक्तों की भक्ति भावना को जगाते हुए उनकी मनोकामना पूर्ण करने की हुई तो उन्होंनंे अशोक नामक चरवाहे को अपने भक्ति की प्रेरणा दी तब तत्पश्चात अशोक नामक चरवाहा चैकी रजौना के ग्रामीणों के साथ मिलकर खेलने के दरम्यान टीले की खुदाई कर डाला । देखते ही देखते एक अधिमुक्त काले रंग का शिवलिंग मिला । जिसे श्री गणेश चतुर्थी, वैशाख कृष्ण पक्ष संवत् 2034 तदनुसार 7 अप्रैल, 1977 ई0 हम सब कि सौभाग्य सूर्य के उदित होने का दिवस था । संसार के अन्य भागोें में, अंगकोरवाट में, अफगानिस्तान में, अमेरिका के मेक्सिकों नगर में भी शिवलिंग पाए गए है लेकिन यह काले रंग का चिकना शिवलिंग चैडा और लंबा एवं काफी भव्य कांतीमय है तुलसी रामायण के अनुसार जब राजा दशरथ ने राम सहित सभीं राजकुमारों का पुत्रेष्ठी यज्ञोपवित संस्कार मंुडन के लिए इसी रास्ते से भगवान शिव की पुजाकर श्रृंगि रिषि के यहाॅं गये थे जो श्रृंगि रिषि आश्रम लखीसराय से 9 किलोमिटर कि दुरी पर चानन प्रखंड में है इसलिए श्री इन्द्रदमनेश्वर महादेव का महत्त्व भी है । लेकिन अशोकधाम की महिमा न्यारी और प्यारी है । इस मंदिर के धर्मस्थल जाने के लिए लखीसराय एवं किउल स्टेशन से रिक्शा, टमटम एवं टेक्सी मिलती है । यह स्टेशन से मात्रा 6 किलोमिटर कि दुरी पर स्थित हैं । राजधानी पटना से 125 किलोमिटर पुरब राष्ट्रीय उच्च पथ ;नेशनल हाईवे 80पर से लगभग 1 किलोमीटर की दुरी पर भोलेनाथ ;अशोकधाम अवस्थित हैं ।
लखीसराय में नये सिरे से रमणिक पर्यटन स्थल ऐतिहासिक महत्व के कारण भोजपुरी फिल्मो के निर्मता निर्देशक एवम कलाकार अक्सर सूटिंग करते देखें जाते है बिहार सरकार का उपेक्षा के कारण लखीसराय का ऐतिहासिक धरोहर आज अपराधियो का वसेरा बन कर रह गया है लखीसराय में नये सिरे से रमणिक पर्यटन स्थल पर जिला प्रशासन ध्यान दे और पर्यटक क्षेत्र के रूप मे बिकसित करे तो यह लखीसराय जिले का अशोक घाम बिहार का देवघर बनकर अच्छा राजस्व देने के साथ देश विदेश के मनाचित्र पर भी आ सकता है
ऐतिहासिक स्टोरी- इस पवित्र तीर्थ स्थल के निकट अन्य तीर्थ स्थल हैं जैसे श्रृंगीरिषि आश्रम, सीताकुण्ड, देवी त्रिपुर सुंदरी ;बड़हिया, भगवान महावीर का जन्म स्थल ;लछुवाड एवं महादेव सिमरिया ;सिकंदरा में हैं । किन्तु इसके साथ पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य भी जुड़े है, जो इस स्थापित तथ्य के प्रति हमारे विश्वास को बल प्रदान करते है । अशोकधाम के आस-पास के लोगों का कहना है कि भगवान शिव के अतिरिक्त श्री विष्णु, श्री लक्ष्मी जी, भगवती दुर्गा, नंदी आदि की कलात्मक मूत्र्तियों की रचना गुप्तकाल में हुई थी । ऐसी अनेक मुत्र्तियां इस धम में भी उपलब्ध होती रही है । इससे भी यह निष्कर्ष निकलता है कि कृमिला को अशोकधाम गुप्तकाल में भी अत्यंत महत्वपूर्ण धर्मस्थल था । अशोकधाम का शिवलिंग का नामकरण की श्री इन्द्रदमनेश्वर महादेव ने किया था । यह नाम पालवंश के अन्तिम शासक राजा इन्द्रद्युम्न के कारण किया गया । उसके पूर्व धर्मपाल सन 770 से 810ई0बौद्धमतावलम्बी था । उसी ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की थी उसके काल में बौद्वघर्म का विकास हुआ । लेकिन इसके साथ ही मंदिरों के विध्वंस की गति भी तीव्र हुई । 871 ई0 में नारायण पाल शासक हुआ करता था । उसने अपनी राजधनी मुद्रागिरी ;मुुंगेर में रखी । भागलपुर संग्रहालय के ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि उसने मुद्रागिरि से श्रीनगर ;पाटलीपुत्रा के बीच 1000 लगभग शिव मन्दिर बनवाये । लेकिन अशोकधाम में दो फीट लंबे और डेढ़ फीट चैड़े एक काले पत्थर पर 1000 शिवलिंग मुत्र्तिया निर्मित मिले है । शायद यह नारायण पाल द्वारा बनाये गये अनेक शिव मंदिरों का प्रमाण है ।
इन्द्रद्युम्न पाल अपने वंश का अन्तिम शासक था । उसकी राज्य सीमा खड़गपुर, मंुगेर, जयनगर ;लखीसराय थी । बख्तियार खिलजी ने इसे पराजित किया था । वे पत्नी के साथ नित्य ही अशोकधाम शिवपूजन के लिए जाते थे । वही इस मंदिर होते हुए जलप्पा स्थान, श्रृंगीरिषि भी जाया करता था । उन्होेंने ही इस शिव मंदिर का निर्माण करवाया, जिसकी नींव 1977-78 ई0 की खुदाई में दिखाई पड़ी । इसी कारण इस शिवलिंग का नाम श्री इन्द्रदमनेश्वर महादेव पड़ गया । लखीसराय समाहरणालय के बगल में जयनगर पहाड़ी पर इन्द्रद्युम्न के भवन का अवशेष पाया गया है । इसकी चर्चा मुंगेर गजेटियर में किया गया है ।
इस क्षेत्र की ऐतिहासिकता के संबंध में लाॅर्ड कर्निंघम के द्वारा वर्णित पुरातात्विक सर्वेक्षण प्रतिवेदन में भी विवरण दिया हुआ है, जिसका उल्लेख आचार्य राम रघुवीर ने अपनी उपर्युक्त पुस्तक में भी किया है । कर्निंघम को हरूहर और कियुल नदी के संगम पर 4 मील लंबे और 1 मील चैड़े क्षेत्रों में एक विशाल नगर की अवस्थिति का पता चला था । यहां बौद्वघर्म होने की संभावना का अनुमान लगाया था । उसने दूसरे टीले के अंदर अपेक्षाकृत प्राचीन मंदिर के अवशेष की संभावना जतायी थी । कर्निंघम ने कतिपय शिव, विष्णु आदि मंदिरों के अवशेष का वर्णन किया है । एक चतुर्भुजाकार टीले पर भगवान विष्णु की 3 छोटी और 1 बड़ी प्रतिमा उसे मिली थी । वहां पत्थर के खण्डों पर शंख लिपि में खुदे अक्षर भी थे । यह लिपि 7-8वीं शताब्दी में सम्पूर्ण भारत में प्रचलित थी ।
आज का लखीसराय पाल काप्य रिषि का लोहितार्णव तथा राजा कृमि का कृमिला नगर है जो आज किउल के नाम से जाना जाता है। ह्नेनसांग, कनिंघम तथा बैंग्लर द्वारा उल्लिखित शिव मंदिर से युक्त यह प्राचीन नगर है । अभी भी शिवमंदिर के तीनों ओर तथा राष्ट्रीय उच्च पथ के किनारे जो टीले हैं उनकी खुदाई करने पर विस्तृत जानकारी मिल सकती है । सौभाग्य से शिव मंदिर के उत्तर पश्चिम की दिशा में एक और मंदिर का अवशेष मिला है । यह संभवतः भगवती पार्वती का मंदिर था । शिव मंदिर का जो अवशेष मिला है । उसी के नक्शे के अनुसार नये मंदिर का निर्माण कार्य अभी चल रहा है । इस धर्मस्थल के स्थापना दिवस में कई हस्तियाँ समेत और गणमान्य उपस्थित थे । इस बुनियाद कि शुरुआत नयेसिरे से सन् 2004 ई0 में की गई हैं ।
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