विवेक
हमारी वह शक्ति है जो उचित निर्णय करने में सहायक होती
मनुष्य का मानस अनंत
शक्तियों का भंडार है,
लेकिन सबसे बड़ी शक्ति
है- विवेक। विवेक ही
हमारी वह शक्ति है,
जो सत्प्रेरणा देती है और
उचित निर्णय करने में
सहायक होती है। यह
संरक्षक सत्ता प्रत्येक मनुष्य
के अंत:करण में
है। यदि मनुष्य विवेक
के प्रकाश में चलता
रहे, तो बुद्धि निर्णय
करने में सफल रहती
है। दुख-कष्टों की
संभावना कम होकर संशय
मिट जाते हैं।
महाभारत में वेदव्यास ने
लिखा है कि समस्त
प्राणियों में मनुष्य से
श्रेष्ठ कोई भी प्राणी
नहीं है, क्योंकि मनुष्य
में विवेक एक ऐसी
शक्ति है, जो अन्य
प्राणियों में नहीं है।
इसी के आधार पर
मनुष्य अन्य प्राणियों को
अपने वश में कर
सकता है, जबकि अन्य
प्राणी मनुष्य को अपने
वश में नहीं कर
सकते। इस आधार पर
यह मान लिया गया
कि मनुष्य कुछ भी
करे, कुछ भी खाए
और कुछ भी पिए,
उसके लिए सब ठीक
है। इस मान्यता का
मनुष्य ने अपने स्वार्थ
की पूर्ति के लिए
दुरुपयोग किया। श्रेष्ठ होने
का मतलब है-मनुष्य।
मानव वही खाए, जो
उसके लिए परमात्मा ने
अंतस चेतना के माध्यम
से आदेश दिया था।
मनुष्य वही पिए, जो
उसके लिए नियत किया
गया। वेदव्यास ने वेदों का
सार बताते हुए कहा
था कि हम दूसरों
के साथ ऐसा व्यवहार न
करें, जो हमें पसंद
न हो।
हमें कोई आघात पहुंचाता
है, तो हमें कष्ट
होता है। ठीक इसी
आधार पर हमें अपने
विवेक से यह सोचना
चाहिए कि हमारे द्वारा
अन्य लोगों को पीड़ित
करने से उतना ही
कष्ट होता है, जितना
हमें। दूसरों को कष्ट
पहुंचाने की इस प्रवृत्ति ने
मनुष्य को भ्रमित किया
है और निरंकुश व
निष्ठुर बनाया है। आज
विवेकशीलता के अभाव में
मनुष्य शारीरिक और मानसिक दृष्टि
से निरंतर अस्वस्थ होता
चला जा रहा है।
अपराध, नशाखोरी, मिलावट, जमाखोरी तनाव,
क्रुरता पारस्परिक शोषण, उच्छृंखलता, धोखाधड़ी, आपाधापी,
स्वार्थ लोलुपता आदि दिनोंदिन बढ़
रहे हैं। परिणामस्वरूप मनुष्य
सच्चे सुख व शांति
से दूर होता जा
रहा है।
मनुष्य सामाजिक प्राणी है और
सर्वश्रेष्ठ भी, लेकिन मनुष्य
की सामाजिकता व श्रेष्ठता की
सार्थकता तभी है, जब
वह विवेकपूर्ण जीवन जीए, क्योंकि
विवेक ही मिश्रित नीर-क्षीर रूपी जीवन
की समस्या को पुन:
पानी का पानी और
दूध का दूध कर
सकने की सामर्थ्य
रखता है।