कभी तु मेरे करीब आ की, मेरा इश्क मुझे खुदा लगे।
मेरी रूह में उतर जरा की, मुझे कुछ अपना पता लगे।
रोकोमत ! टोको मत !! करीब हमारे आने दो
यौवन की रग-रग में, प्यार हमेंजताने दो।।
दिन कुछ खास है, बासंतिक एहसास है ।।
आॅखों में नशा, होठो पर प्यास है।।
एकटक-अपलक हो जाने दो।
यौवन को जीभर सहलाने दो।।
जो मन करे पाने दो। प्यार की गंगा में नहाने दो।।
2 बसंत ऋतु की आहट में बज रहा है झाल ।
मृदंग मन मचल रहा है देकर अपना ताल ।।
दमदमाती-बलखाती, यौवन की उभार दिखाती ।
कजरारे नैनों पर लटके घुंधराले बाल ।।
रसभरी होठ पर दमके, रंग लाल ।।
सेव की तरह चमके, कोमल गाल ।।
तीरछी नजर,मिठी मुस्कान,यौवन है गदराल ।
लचक-लचक कमर हिले,चले गजब का चाल ।।
हाय बलखाये, हाय ललचाये। देखकर इनका कमाल ।
पोर-पोर में रंग लगाकर , कर देता मालामाल ।।
3 मस्त-मस्त और तरो-ताजा
चन्द्रमुखी सिर मुकुट साजा
यह देख सब छोरा ललचाये ।
कुछ कुम्हलाये,कुछ पगलाये ।।
बासंती परिधानों में लबंग ।
अतिसुन्दर अंग-प्रत्यंग ।।
जब तेवर बदल वोबलखाये ।
कुछ मिमियाये,कुछ धिधियाये ।।
आजा गोरी आजा, मधुरस पिला जा ।
एकाकार हो, एक-दुसरे में समा जा ।।
इन्द्रधनुषी रंग चन्द्रमुखी फैलाई ।
सुर्यमुखी बन सप्तम स्वर सुनाई।।
तेरी आह , मेरी चाह है ।
आ समा जा, देखुं क्या थाह है।।
फिर क्या था !
छोरा ने छोरी को कलेजे में समाया ।
खुब चुमा-चाटा और चटक रंग लगाया ।।
रंग लगते ही ज्वाला मुखी बन दहाडी ।
साडी- जम्फर-ब्लाउजों को भी फाडी ।।
ऐ रास्ते से तुम क्यों भटक गए हो।
तुम्हे करना था क्या, ये क्या कर गए हो ।।
4 दिल को दिल से लव्वोलुवाव कर दिया है ।
आत्मा को तन-मन से एकाकार कर लिया है।।
फिर कुछ नहीं बचेगा । पर सब रहेगा ।।
सुर को संगीत का साज मिलेगा ।
रूह को रूहानी राज मिलेगा ।।
दिन हो दोपहर हो या रात हो।
प्यार के सिवा कोई ना बात हो ।।
अंग में रंग जर्दा कर दो।
परदा को बेपरदा कर दो ।।
फिर क्या !
जान को प्राण मिलेगा ।
स्वर्ग का समान मिलेगा ।।
रणजीत सम्राट
युवा कवि साहित्यकार
पत्रकार
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1 रंगोर का रंग
ओस से धुली फुल के पंखुडियों पर
अब तक लिखे तुम खुब सूरत गीत
शीतल हवा के धुन में पिरोकर
रंगों की वादी से लेकर संगीत
कुदरत के आस-पास रहकर परोसा ।
लखीसराय के जन-पद के गीत ।।
संस्कृति , कला और साहित्य
अच्छा लगा रंगोर का आवरण
मुद्रण- संपादन
तुम्हारा प्रयास स्तुत्य है मित्र
युवा कवि सह लेखक ,सम्पादक रणजीत !!
2 बर्ष के विहान शुरू
आम के अमराई में
कोयल की तान शुरू
चिडियों के चुनमुन संग
खग के सहगान शुरू
फुलों के बक्ष पर
मधुप के गान शुरू
रंग और गुलाल से
मन के स्नान शुरू
गोरी केअंग से
कंत की पहचान शुरू
काम के कमान पर
रति के बाण शुरू
अपनों के संग में
बर्ष के विहान शुरू ।। -- दशरथ महतो महिसोना
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1 ब्रहमदेव सिंह लोकेश दुर संचार विभाग
रंगोर । रंगोर ।।
सम्पूर्ण शहर कोहिला दिया रंगोर ने
जन-जन को अमृत पिला दिया रंगोर ने
मुरझाये फुल को खिला दिया रंगोर ने
विछुडेकवियोंको मिला दिया रंगोर ने
रंगोर की रंगाईका कहीं कोई छोड नहीं।
सरपट दौड रहा हैकहीं कोई मोड नहीं।।
सबसे आगेबढकर परचम लहरा दिया रंगोर ने।
अंधेरा में अनेक दीप जला दिया रंगोर ने।।
रंगोर होली में सबकोरंग गुलाल लगाते रहेगा ।
सबके ह्दय में सदभावना के दीप जलाते रहेगा ।।
एकता और भाईचारे का सुपथ दिखाते रहेगा ।
ज्ञानभक्ति का मालपुआ खिलाते रहेगा ।।
अपना रंग दिखाते रहेगा रंगोर ।
मुर्दे कोजिन्दा करतेरहेगा रंगोर ।
जन-जन कोअमृत पिलाते रहेगा रंगोर
लखीसराय शहर को हिलाते रहेगा रंगोर ।।
ब्रहमदेव सिंह लोकेश
9471634555
------------------------------------प्रो0 शिव शंकर मिश्रा सेवा निवृत व्याख्याता
हिन्दी विभाग आर0लाल0 काॅलेज लखीसराय
होलिका का हो दहन, या हो दहन अन्याय का
लंकेश नगरी का दहन हो, या दहन पर्याय का ।।
आततायी बच न पाया,न्याय हावी ही रहा
आ गईसद्वृतियां, जब रंग होली का चढा ।
असुरों के शिकंजे मेंविवश,युग मौन था।
धर्म,नीति,न्याय, ये सब गौण था
पर मिली जब चेतना,भक्त और भगवान से,
आ गई होली तुरत,छूटकर शैतान से।
चिरकाल का संदेश लेकर, यह पवन गतिमान है।
आत्मरक्षा के लिए यह ,क्रान्ति का पैगाम है,
थे कभी कम्पित मगर, अब प्रणय बेला है मिली,
उस रास्ते पर चल पडों, जिस रास्तेहोली चली।
आनन्द का क्षण हो कभी,तो कुछ बुरा लगता नहीं,
रास आता हर किसी को, भेद आता है नहीं,
ताप से अबतक जगत में,रोशनी खिलती रही,
इसलिए रंगोर से, होली सदा मिलती रही ।
यह कवच आनन्द का है, मस्त आठोयाम है।
सौन्दर्य की उठती तरंगे,क्या सुबह क्या शाम है।
यह कल्पना का शीशमहल , आलिंगन का पैगाम है।
त्यौहारों को गति देती,होली सुख का फरमान है।
आओ गले-गले मिलकर, भेद-भाव को भूल चलें
होली की अगुआई में, अन्तस पीडा से उबड चलें,
दुराचार का हो दहन, या दहन हो भ्रष्टाचार का
होली के आगोश में ही, कल्याण है संसार का ।।
प्रो0 शिव शंकर मिश्रा सेवा निवृत व्याख्याता
हिन्दी विभाग आर0लाल0 काॅलेज लखीसराय
देखो बसंत आया है।
कितना उन्माद लाया है।
ऋतुओंकी परी है ये
सदाबहार की लडी है ये। देखों--
सदाबहार की इस ऋतु में
मन यौवन हो जाता है।
उम्र ना कोई तकाजा
मन विहवल हो जाता है। देखो--
बसंत का क्या पुछना
मातम में बहार लाया है
मन कितना भी रंगा हो
खुशियोंसेभर आया है। देखो --
रविन्द्र नाथ सिंह